( अपने स्वार्थ से परे सोचने की जरुरत )
मेरे घर के पास ही कल एक सडक हादसे मे मेरे एक करीबी मित्र की लडकी की मौत ने मुझे तोड कर रख दिया। कल दिन भर मैं इसी चिन्तन मे डुबा रहा कि क्यों हम अपने आसपास होने वाली दुसरो की लापरवाही का विरोध नही करते ? क्यों हम इसे एक सामान्य हाद्सा मानकर उसको रोकने की पुरी जिम्मेवारी प्रशासन पर डाल कर चुप रह जाते है? जब प्रशासन खुद आंख मुंद कर दुर्घट्ना को रोकने के लिये कोइ सार्थक प्रयास ना करे तो मुझे सुनील कुमार जी का यह सन्देश बिल्कुल उचित लगता है कि कानुन अपने हाथ में ले और दोषियो को रोककर खुद सजा दे ,क्योंकि प्रशासन में काम करने वाले अपनी आत्मा, इमान का सौदा कर केवल वहीं ध्यान देते है जहां इनको लाभ दिखे। जनप्रतिनिधि भी अपनी वहीं रोटियां सेकतें है जहां आंच हो ?
इस पत्र के माध्यम से सडक विभाग की देखरेख का जिम्मा संभालने वाले अधिकारिओं से मै पुछना चाहता हुं, की उनके बच्चे जब इस तरह के हादसे मे पीडित हो तो तब भी वो ऐसा ही गैर जिम्मेंदाराना रवैया अपनाएंगे ? जिस जगह पर ये हादसा हुआ वहां पर चारो ओर से आवजाही होती है किन्तु कभी प्रशासन ने सडक अवरोधक बनाने के लिये ध्यान नही दिया। सडकें खराब, सडक-परिवहन विभाग खराब, आर.टी.ओ. खराब। रिश्वत लेकर अयोग्य आदमी को ड्राइविंग लाइसेंस दे दिया जाता है कम उम्र के नौसिखिये बिना ड्राइविंग लाइसेंस के गाडी चला रहे है। प्रशासन चन्द पैसे इनसे लेकर इन्हे और खुली छूट दे रहा है अच्छा कानुन है इस देश का ? खुद शराब पीकर ड्राइव कर रहे हैं, दूसरी गाडियों को पीछे छोडने के अहंकार में गाडी तेज चला रहे हैं, ओवरटेक कर रहे हैं, यातायात-नियम तोड रहे हैं। चाहे किसी की जान चली जाये । लेकिन अब शायद इन सवालों का उनके लिये कोई मायने नहीं है ,जानेवाले मासूम बच्चे ,माएं, भाई-बहन और पिता लौट्कर नही आने वाले। नागरिकों की बुनियादी सुरक्षा सुनिश्चित करने की चिंता शायद किसी को नहीं है। अफसोस इस बात का है कि जो दुर्घटना होती है उसका दर्द, विकलांगपन, बच्चों का, अनाथपन, स्त्रियों का वैधव्य आजीवन होता है आश्रितों की जिंदगी बर्बाद हो जाती हैं.
उससे भी अफसोस की बात है कि इस घटना के होने के बावजुद प्रशासन व नागरिक अपने स्वार्थ से परे नहीं सोचेंगे ।
चरनदीप अजमानी , पिथौरा
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