(नये साल कि ख्वाहिशें )
जिंदगी के हम पे यारो, कुछ तो कम एहसान हुए,
अपनों के हाथो अपनों की महफ़िल में नीलाम हुए |
पंडित ने क्यों आँखे मुंदी ,क्यों मुल्ला नहीं चिल्लाया,
मजहब के नाम पे यारो ,जब भी कत्लेआम हुए |
मेरे नाम पे धोखा क्यों, मेरी मौत को नहीं हुआ,
वैसे तो मेरी बस्ती में, मेरे भी हमनाम हुए |
उन बच्चों से जाकर पुछो, नये साल कि ख्वाहिशें ,
भुख मिटाने मे गुम, जिनके दिन रात तमाम हुए|
चरनदीप अजमानी, पिथौरा, 9993861181
http://ajmani61181.blogspot.कॉम
जिंदगी के हम पे यारो, कुछ तो कम एहसान हुए,
अपनों के हाथो अपनों की महफ़िल में नीलाम हुए |
पंडित ने क्यों आँखे मुंदी ,क्यों मुल्ला नहीं चिल्लाया,
मजहब के नाम पे यारो ,जब भी कत्लेआम हुए |
मेरे नाम पे धोखा क्यों, मेरी मौत को नहीं हुआ,
वैसे तो मेरी बस्ती में, मेरे भी हमनाम हुए |
उन बच्चों से जाकर पुछो, नये साल कि ख्वाहिशें ,
भुख मिटाने मे गुम, जिनके दिन रात तमाम हुए|
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