चिठ्ठी ना कोई संदेस जाने वो कौन सा देस
जहाँ तुम चले गये
इस दिल पे लगाकर ठेस जाने वो कौन सा देश
जहाँ तुम चले गये
एक आह भरी होगी, हमने ना सुनी होगी
जाते जाते तुमने आवाझ तो दी होगी
हर वक़्त यही है गम, उस वक़्त कहाँ थे हम
कहां तुम चले गये
हर चीज पे अश्कों से लिखा है तुम्हारा नाम
ये रस्ते, घर, गलियाँ तुम्हे कर ना सके सलाम
हाय दिल में रह गई बात, जल्दी से छुडाकर हाथ
कहाँ तुम चले गये
अब यादोँ के कांटे इस दिल में चुभते हैं
ना दर्द ठहरता है ना आंसु रुकते हैं
तुम्हें ढुँढ रहा है प्यार, हम कैसे करें ईकरार
कि हाँ तुम चले गये
जगजीत जी का हमसे जुदा होना दुखदायी है ....क्या कह सकते हैं ? उनके द्वारा गयी गयी यह ग़ज़ल मुझे भी बहुत प्रिय है ....!
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