( काश की हम भी पत्थर होते )
काश की हम भी पत्थर होते
ना दुःख होता ना हम रोते
बच्चो के खिलोने बन जाते
घर घर हम भी पूजे जाते
कोई हमे दूर फेकता
कोई हमे पानी में डुबोता
पानी में भी डुबक डुबक कर
हम तो खूब ग़ोता लगाते
काश की हम भी पत्थर होते
ना दुःख होता ना हम रोते
किसी मकान की नीव बन जाते
किसी के घर का चुल्हा बन जाते
कोई हमसे फल को तोड़ता
कोई हमसे ठोकर खाता
कोई कीचड़ में हमे डालकर
अपने लिए एक राह बनाता
प्यार ही प्यार हम फैलाते
नफरत के यूँ बीज न बोते
काश की हम भी पत्थर होते
ना दुःख होता ना हम रोते
चरणदीप अजमानी, पिथोरा 9993861181
Ajm.charan@gmail.com
Ajmani61181.blogspot.com
बढिया कविता है, उम्दा भाव के साथ
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना ...
ReplyDeleteकृपया टिप्पणी बॉक्स से वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...
वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
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